Wednesday, May 6, 2015

SANSKRIT NAME

तैलम्           =      Oil
गोधूम:          =      Wheat
तण्डुल:          =      Rice
चणक:          =      Chick-Peas
तिल:           =      Til
सर्षप:          =      Mustard
चूर्णम्          =      Flour
यव:           =      Barley
मुद्र:           =      Green beans
आढकी         =      Thoor Dal
ओदनम्        =      Rice
लवणम्        =      Salt
सार:          =      Rasam
अवलेह:        =      Pickles
क्वथिम्        =      Sambar
तक्रम्          =      Butter-Milk
क्षीरम्          =      Milk
तेमनम्         =      Curd-Soup
व्यञ्जनम्       =     Curry
पर्पट:          =      Papad
रोटिका         =      Roti
चित्रान्नम्       =      Mixed Rice
मिष्टानम्        =      Sweets
स्थालिका       =      Plate
चमस:         =      Spoon
दर्पण:         =      Mirror
कङ्कतिका      =      Comb
कङ्कतम्       =      Comb
फेनकम्        =      Soap
स्नानफेनकम्    =      bathing Soap                 
वस्त्रफेनकम्     =      Washing Soap
कूर्च:          =      Brush
दन्तफेन:       =      Toothpaste
दन्तकूर्च:       =      Tooth Brush
पादरक्षा        =      Slippers
पादत्राणम्       =      Shoes
लेखनी         =      Pen
अङ्कनी        =      Pencil
पुस्तिका        =      Note Book
कर्गदम्         =      Paper
पुन:पूरणी       =      Refill
क्षुरपत्रम्        =      Blade
विद्युद्दीप:        =      Blub-light
व्यजनम्        =      Fan
पिञ्ज:         =      Switch
दण्डदीप:        =      Tube-light
आसन्द:        =      Chair
शाटिका         =      Saree
युतकम्         =      Shirt
करवस्त्रम्        =          Handkerchief
शिरस्त्रम्        =      Cap
गलबन्ध:       =      Necktie
पादकोश:       =      Socks
चोल:          =      Blouse
ऊरुकम्         =         Pant, Trousers
राङ्कवम्       =      Shawl


ऊर्णिका        =      Mufler 
धौतवस्त्रम्      =      Dhoti
पिता          =      Father
माता          =      Mother
अग्रज:        =      Elder Brother
अग्रजा        =      Elder Sister
अनुज:        =             Younger brother
अनुजा        =      Younger Sister
पितृव्य:       =      Uncle
पितृव्या       =      Aunt
जामाता       =      Son in law
स्नुषा        =      Daughter in law
मातुल:              =      Maternal Uncle
मातुलानी     =      Maternal Aunt
श्वश्रु:                 =      Mother in law
श्वशुर:               =      Father in law
देवर:                 =     Brother in law

सुभाषितानि

अच्छे विचार (सुभाषित)
अपूर्व: कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव भारति !
व्ययतो वृद्धिमायाति क्षयमायाति सञ्चयात् ॥1

अर्थ :- हे सरस्वती ! तुम्हारा यह खजाना अद्भुत हैजो व्यय करने से बढता है और संग्रह करने से घटता है ।


 यौवनं धनसम्पत्ति-प्रभुत्वमविवेकता ।
एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम् ॥2
                
अर्थ: - यौवनधन-सम्पत्तिप्रभुताअविवेकता । इन चारों में अनर्थ के लिए एक ही पर्याप्त होती है । यदि चारों मौजूद होतो अनर्थ के क्या कहने ?


 आयुष: क्षणमेकोऽपिन लभ्य: स्वर्णकोटिकै: ।
स चेन्निरर्थकं नीत:का नु हानिस्ततोऽधिका: ॥3

अर्थ: - आयु का एक क्षण भी करोडों स्वर्ण मुद्राएँ देकर भी प्राप्त नहीं किया जा सकता । अत: वही यदि व्यर्थ बिता दिया गया तो उससे अधिक हानि और क्या होगी ॥


 वाणी रसवती यस्य यस्य श्रमवती क्रिया ।
लक्ष्मी: दानवती यस्य सफलं तस्य जीवनम् ॥4

 अर्थ: - जिस व्यक्ति की वाणी मधुर होकार्य परिश्रम से पूर्ण होजिसका धन दान देने में काम आता होउसी व्यक्ति का जीवन सफल है ।


 नास्ति यस्य स्वयंप्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम्।
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पण: किं करिष्यति ॥5


अर्थ:- जिस व्यक्ति की अपनी बुद्धि नहीं है । शास्त्र उसका क्या उपकार करेंगेजिस प्रकार आँखों से रहित व्यक्ति का दर्पण क्या उपकार करेगा ॥ 


विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन ।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ॥6॥

अर्थ: - विद्वान् होना और राजा होना कभी भी एक समान नही हो सकता । राजा तो अपने ही देश में पूजा जाता हैविद्वान् सब जगह पूजा जाता है ।


सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग् भवेत् ॥7


अर्थ: - सभी सुखी रहें । सभी नीरोग रहें । सबका कल्याण होकोई दुखी न हो ।


 कल्याणमस्तु सर्वेषांविलसन्तु समृद्धय: ।
सुखा: समीरणा वान्तु भान्तु सर्वा दिश: शुभा:॥8॥ 

अर्थ: - सबका कल्याण होसबकी धनसम्पत्ति बढेसुखदायी वायु बहेसभी दिशाएँ कल्याणकारी होकर सुशोभित हों ।



सर्वस्तरतु दुर्गाणिसर्वो भद्राणि पश्यतु ।
सर्व: कामानवाप्नोतुसर्व: सर्वत्र नन्दतु ॥9

 अर्थ: - सभी कठिनाईयों को पार कर लेंसभी अच्छा (कल्याणकारी) देखेंसभी की इच्छाएँ पूर्ण होंसभी हर जगह आनन्द से रहें ।


 युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा ॥10


अर्थ: - उचित आहार-विहारउचित कर्मों में चेष्टाउचित निद्रा व उचित जागरण होने से दुखों का नाश होता है ।

वरमेको गुणी पोत्रो न च मूर्ख शतान्यपि ।
एकचन्द्रस्तमो हन्ति न च तारागणैरपि ॥11

अर्थ: - एक भी सद्गुणी पुत्र अच्छा है सैकड़ों पुत्र अच्छे नहीं । चन्द्रमा अकेला अन्धेरे को दूर कर देता हैं । अन्धेरा तारों के समूह से दूर नही होता ।


 सेवितव्यो महावृक्ष: फलच्छाया समन्वित: ।
यदि दैवाद् फलं नास्तिछाया केन निवार्यते ॥12

अर्थ: - एक महान् वृक्ष की सेवा करनी चाहिए (उगाना चाहिए)जो फल और छाया दोनों से युक्त हो । यदि भाग्य से फल नहीं आये तो छाया कौन हटा सकता है । 



श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुण्डलेन
दानेन पाणिर्न तु कङ्कणेन 
विभाति काय: खलु सज्जनानां
परोपकारैर्न तु चन्दनेन ॥13॥


अर्थ: - कान की शोभा सुनने से होती है कुण्डल से नहींहाथ की शोभा दान करने से होती है कंगन से नहींउसी प्रकार सज्जनों का शरीर परोपकार से शोभित होता है चन्दन से नहीं ॥





गन्धेन हीनं सुमनं न शोभते
दन्तैर्विहीनं वदनं न भाति ।
सत्येन हीनं वचनं न दीप्यते
पुन्येन हीन: पुरुषो जघन्य: ॥14॥


अर्थ: - गन्ध के बिना फूल शोभा नहीं पातादाँतो के बिना मुख अच्छा नहीं लगतासच्चाई के बिना वचन (वाणी) अच्छे नहीं लगतेवैसे ही पुण्य से हीन (पुण्य न करने वाला) व्यक्ति जघन्य होता है ।




पयसा कमलं कमलेन पय:
पयसा कमलेन विभाति सर: ।
शशिना च निशा निशया च शशि:
शशिना निशया च विभाति नभ: ॥15॥


अर्थ: - पानी से कमल और कमल से पानी शोभित होता हैपानी और कमल दोनों से तालाब शोभित होता है । चन्द्रमा से रात और रात से चन्द्रमा शोभित होता हैचन्द्रमा और रात दोनों से आकाश शोभित होता है ।


मणिना वलयं वलयेन मणि:
मणिना वलयेन विभाति कर: ।
कविना च विभु: विभुना च कवि:
कविना विभुना च विभाति सभा ॥16॥


अर्थ: - मणि (रत्न) से कंगन और कंगन से मणि शोभित होता हैकंगन और मणि दोनों से हाथ शोभित होता है । कवि से राजा और राजा से कवि शोभा पाता हैराजा और कवि दोनों से सभा शोभित होती है ।


देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चन: ।
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशय: ॥17॥


अर्थ: - भाग्य के रूठ जाने पर गुरु त्राता (बचाने वाला) होता हैगुरु के रूठ जाने पर कोई नहीं । गुरु ही त्राता हैगुरु ही त्राता हैगुरु ही त्राता है ,इसमें कोई संशय नहीं ।



हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम् ।
कर्णस्य भूषणं शास्त्रं भूषणै: किं प्रयोजनम् ॥18॥

अर्थ: -  हाथ का आभूषण दान करना हैकण्ठ का आभूषण सच्चाई हैकान का आभूषण शास्त्र सुनना है तो (बाह्य)  आभूषणों का क्या प्रयोजन ।


विद्या प्रतिष्ठा न धनं प्रतिष्ठा
साऽप्यप्रतिष्ठा विनयव्यपेता ।
गुणा: प्रतिष्ठा न कुलं प्रतिष्ठा
तेऽप्यप्रतिष्ठा यदि नात्मनिष्ठा ॥19॥


अर्थ: - विद्या से प्रतिष्ठा होती हैधन से प्रतिष्ठा नहीं । वह भी (विद्या) विनय के बिना अप्रतिष्ठा होती है । गुणों से प्रतिष्ठा हैकुल से प्रतिष्ठा नहीं । वे (गुण) यदि आत्मनिष्ठ  नहीं हैं तो अप्रतिष्ठा के कारण बनते हैं ।

कर्णामृतं सूक्तिरसं विमुच्य
दोषे प्रयत्न: सुमहान् खलानाम् ।
निरीक्षतो केलिवनं प्रविश्य
क्रमेलक: कण्ठकजालमेव ॥20॥


अर्थ: - दुर्जनों का प्रयत्न कानों के द्वारा सुनने योग्य सूक्ति रस को छोडकर दोष में रहता है । जिस प्रकार ऊँट बगीचे में प्रवेश करके भी कण्टकजाल (काँटों का पेड़) ही ढूंढता है ।


यथा चतुर्भि: कनकं परीक्ष्यते
निर्घर्षणच्छेदन-ताप-ताडनै: ।
तथा चतुर्भि: पुरुषं परीक्षते
त्यागेन शीलेन गुण-कर्मणा ॥21॥

 अर्थ : - जैसे सोने की जाँच घिसनातोडनाजलाना और ताडना (पीटना) आदि चार प्रकार से होती हैउसी प्रकार मनुष्य की जाँच भी त्यागशीलगुणकर्म आदि चार प्रकार से होती है ।

शीतलं चन्दनं लोके चन्दनादपि चन्द्रमा ।
चन्द्र-चन्दनयोर्मध्ये शीतल: साधु-सङ्गम: ॥22॥

शुभकामना

संस्कृत मे शुभकामना


जन्मदिन के लिए


पश्येम शरद: शतं जीवेम शरद: शतं श्रुणुयाम शरद: शतं प्रब्रवाम शरद: शतमदीना: स्याम शरद: शतं भूयश्च शरद: शतात् ॥ जन्मदिवसस्य शुभाशया: ॥

 Or

दीर्घायुरारोग्यमस्तु
सुयशः भवतु
विजयः भवतु
जन्मदिनशुभेच्छाः


विवाह के लिए

विवाह अनुबन्धम्। शुभं भवतु ॠषि कृत प्राचीन प्रबन्धम्

or

लोक सेवया देव पूजनम्
गृहस्थ जीवन भवतु मोक्षदम् ।।

 

सामान्यतया शुभकामना


शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धन संपदः  |
शत्रु बुद्धि विनाशाय दीपंज्योति नमोऽस्तु ते
||

 

 

दीपावली पर शुभकामना के लिए


सत्याधारस्तपस्तैलं दयावर्ति: क्षमाशिखा
अंधकारे  प्रवेष्टव्ये  दीपो यत्नेन वार्यताम्

 

 

दान के लिए


यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते

Tuesday, May 5, 2015

संस्कृत-वर्णमाला

वर्ण-विभाग:

सामान्यतया संस्कृतभाषायां अष्टचत्वारिंशत् वर्णा: भवन्ति, येषां विवेचनम् अध: वर्तते । 


स्वरा:

त्रयोदश: (13)  स्वरा: भवन्ति ।

 हृस्व-स्वरा:        अ   इ  उ   ऋ  लृ     (5 - पञ्च)
             दीर्घ-स्वरा:       आ  ई  ऊ  ॠ   ए   ऐ  ओ  औ    (8  -  अष्ट)



व्यञ्जनानि

त्रयस्त्रिंशत् (33)  व्यञ्जनानि भवन्ति |

कवर्ग:             क्  ख्  ग्  घ्  ङ्      (5 - पञ्च)
चवर्ग:             च्  छ्  ज्  झ्  ञ्      (5 - पञ्च)
टवर्ग:              ट्  ठ्  ड्  ढ्  ण्        (5 - पञ्च)
तवर्ग:             त्  थ्  द्  ध्  न्       (5 - पञ्च)
पवर्ग:             प्  फ्  ब्  भ्  म्      (5 - पञ्च)
अन्तस्था:              य्  व्  र्  ल्      (4  - चत्वार:)
ऊष्माण:                  श्  स्  ष्  ह्    (4  - चत्वार:)


अयोगवाहौ  

द्वौ (2) अयोगवाहौ भवत: ।

     अनुस्वार:           ं       (1  -  एक:)

   विसर्ग:                :        (1  -  एक:)



(संस्कृतभाषायां संयुक्त-व्यञ्जनानि भवन्ति । एतेषां निर्माणं परस्परं वर्णानां मेलनेन भवति ।)
(क् + ष्    =     क्ष्)
(त् + र्     =     त्र्)
(ज् + ञ्    =    ज्ञ्)
(श् + र्     =     श्र्)
(द् + ध्   =     द्ध् )
(द् + म्    =     द्म् )
(ह् + न्    =    ह्न्)
ह् + य्    =   ह्य्)
(ह् + ण्    =   ह्ण्)






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